राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ, ओडिशा की ओर से पूर्व संघ प्रमुख स्व.शिवराम महापात्र की श्रद्धांजलि सभा आयोजित
राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ, ओडिशा की ओर से
पूर्व संघ प्रमुख स्व.शिवराम महापात्र की श्रद्धांजलि सभा आयोजित
भुवनेश्वर, 30/1: संघ के स्वयंसेवक और पदाधिकारी सामान्य लोगों की तरह रहते हैं, लेकिन अपने कार्य से असाधारण परिणाम प्राप्त करते हैं। ऐसा करते हुए वे सम्पूर्ण समाज को आत्मीयता, स्नेह और कर्तव्य-बोध से जोड़ते हैं।स्वर्गीय शिवराम महापात्र जैसे कई कार्यकर्ताओं ने अपने जीवन में ऐसा करके समाज के सामने एक उदाहरण प्रस्तुत किया है। यह बात आरएसएस प्रमुख डॉ. मोहनराव भागवत ने पूर्व संघ प्रमुख की पुण्यतिथि के अवसर पर भुवनेश्वर के जयदेव भवन में आयोजित श्रद्धांजलि सभा में कही।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, ओडिशा पूर्व प्रांत द्वारा पूर्व संघ प्रमुख ୰ शिवराम महापात्र की स्मृति में आयोजित इस श्रद्धांजलि सभा में भाग लेते हुए भागवत ने कहा कि उनमें राष्ट्र के लिए काम करने की वही ईमानदारी, निस्वार्थता और समर्पण है जो संघ कार्यकर्ताओं में है। उनके व्यवहार ने सभी के लिए एक उदाहरण स्थापित किया है, उनकी कार्यशैली ने सभी को प्रेरित किया l वे एक संघचालक के रूप में काम कर रहे थे, लोगों को इकट्ठा करने और संदेश फैलाने में मदद कर रहे थे। उनका संकल्प एक आदर्श परिवार के साथ एक आदर्श समाज का निर्माण करना था। उनकी प्रेरणा समाज के सभी वर्गों के लोगों के साथ सामंजस्यपूर्ण ढंग से काम करना थी।
ओडिशा पूर्वी क्षेत्र संघचालक समीर कुमार मोहंती की अध्यक्षता और क्षेत्रीय सचिव डॉ. अनिल कुमार मिश्रा के संयोजन में आयोजित स्मृति सभा में पूर्वी क्षेत्र संघचालक डॉ. जयंत रायचौधरी, सह संघचालक मनसुखलाल सेठिया और भुवनेश्वर महानगर संघचालक श्रीनिवास मानसिंग उपस्थित थे। .
इस अवसर पर पूर्व क्षेत्र प्रचारक प्रमुख प्रसन्न कुमार मिश्रा, पूर्व क्षेत्र कार्यवाह दुर्गा प्रसाद साहू, अखिल भारतीय सद्भावना प्रमुख डॉ. गोपाल प्रसाद महापात्र, पूर्व राष्ट्रीय संघचालक इंजी. अशोक कुमार दास सहित अन्य लोगोंने दिवंगत महापात्र को याद किया और उनके जीवन पर प्रकाश डाला।
स्वर्गीय शिवराम महापात्र को सभी लोग प्यार से "बड़े भईया" कहते हैं। उनका जन्म 29 नवम्बर 1929 को अविभाजित पुरी जिले तथा वर्तमान खुर्दा जिले के बाणपुर डिवीजन के कुमारंग शासन में पिता श्रीधर महापात्र और माता गौरी देवी के यहां हुआ था। धर्म, साहित्य, कला और संस्कृति की पावन धारा में सराबोर तथा देशभक्ति के मंत्र से प्रेरित होकर वे माँ भारती की नित्य सेवा में समर्पित हो गये, शाखा पर सदैव उपस्थित रहकर उसका कार्य सुचारू रूप से संचालित करते रहे। साप्ताहिक पत्रिका 'राष्ट्रदीप' में प्रकाशित उनकी कविताएँ और निबंध उनकी साहित्यिक शैली का ज्वलंत प्रमाण हैं, जिसे उन्होंने 'बर्तविलास' कहा था। अपनी साहित्यिक कृतियों में उन्होंने तत्कालीन समाज की अनेक सामाजिक और राजनीतिक घटनाओं पर एक बेबाक राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य प्रस्तुत किया। ब्रह्मपुर का पहला सरस्वती शिशु मंदिर, जो अनेक बाधाओं के बावजूद जौरा साही में बन रहा था, को नीलकंठनगर में स्थानांतरित करने से पहले बड़े भईया इसे अपने आवास के कुछ कमरों में चलाते थे। यद्यपि उक्त शिक्षण संस्थान की स्थापना में अनेक लोगों का योगदान था, किन्तु बड़े भईया ही इसके संस्थापक एवं प्रथम अध्यक्ष थे। ऐसे अनेक सामाजिक, साहित्यिक और सांस्कृतिक कार्यों में उनका प्रत्यक्ष योगदान अविस्मरणीय है। अपने सांसारिक जीवन में सभी दायित्वों का निर्वहन करते हुए उन्होंने संघ कार्य में प्रवेश किया और विभिन्न दायित्वों का निर्वहन किया जैसे 1980 तक गंजाम जिला संघचालक, 1980 से 1985 तक गंजाम विभाग संघचालक, 1985 से 2000 तक सहप्रांत संघचालक, उत्कल सहित संपूर्ण उत्कल क्षेत्र का भ्रमण किया। . इतनी सारी जिम्मेदारी के बावजूद वे अनुगुल में चल रहे प्राथमिक संघ शिक्षा वार्ड में प्रशिक्षु के रूप में शामिल हो गए। वह 1985 में पुरी में आयोजित द्वितीय वार्षिक संघ शिक्षावर्ग के अध्यक्ष थे।
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